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दिव्य शक्ति अखाड़ा के बारे में

एक ऐसा आध्यात्मिक स्थल जहाँ शक्ति और भक्ति का संगम होता है।

इतिहास

सन 1995 में महा मंडलेश्वर संत कमल किशोर जी द्वारा स्थापित।

उद्देश्य

आध्यात्मिक और सामाजिक सेवा के माध्यम से आंतरिक शक्ति को जागृत करना।

अखाड़ा क्या है?

प्राचीन काल में, अखाड़े साधु-संतों का ऐसा समूह होते थे जो राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए कार्य करते थे। संकट के समय में, ये संत अपने अस्त्र-शस्त्र कौशल का उपयोग करते थे और समाज को नैतिकता, धर्म, और राष्ट्रभक्ति का सही मार्ग दिखाते थे।

दिव्य शक्ति अखाड़ा एक आधुनिक अखाड़ा है, जो संन्यासियों और गृहस्थों दोनों को साथ लेकर चलता है। यह एक ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत है और इसमें योग्यतानुसार संतों को महामंडलेश्वर, महंत, श्रीमहंत, पीठाधीश्वर जैसी उपाधियाँ दी जाती हैं। बदलते समय के अनुसार, अखाड़ा उन गृहस्थ लोगों को भी शामिल करता है जो मानवता की सेवा में समर्पित हैं।

भारत के प्रमुख अखाड़े

भारत में कुल 13 मान्यता प्राप्त अखाड़े हैं, जिन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया गया है:

  • शैव संप्रदाय के 7 अखाड़े: पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, पंच अटल अखाड़ा, पंचायती अखाड़ा निरंजनी, आदि।
  • वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े: दिगंबर अनी अखाड़ा, निर्वाणी अनी अखाड़ा, पंच निर्मोही अनी अखाड़ा।
  • उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े: पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, पंचायती नया उदासीन अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा।

किन्नर अखाड़ा को अलग से मान्यता प्राप्त है।

कुंभ मेले की ज्योतिषीय व्याख्या

कुंभ मेले का आयोजन चार स्थानों पर विशेष खगोलीय संयोग के आधार पर किया जाता है:

  • हरिद्वार: जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं।
  • प्रयागराज: जब बृहस्पति मेष राशि में और सूर्य-चंद्र मकर राशि में होते हैं।
  • नासिक: जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं।
  • उज्जैन: जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं।

कुंभ परंपरा का उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत, रामायण और अन्य ग्रंथों में मिलता है, जहाँ संत-विद्वान एकत्र होकर आध्यात्मिक चिंतन करते थे।